याम् चिन्तयामि सततम् महि सा विरक्ता , साप्यन्यमिच्छति जन: स जनोन्यसक्त: ।
असमत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या, धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥
---------------- भर्तृहरिशतक
जिसका सदा चिन्तन करता हूँ , वह् मेरे से विरक्त है । वह किसी और् पर आसक्त है , और वह और किसी अन्य पर आसक्त है, और मुझे तो कोई अन्य ही चाहता है, इसलिये काम देव सहित जिसकी प्रेरणा से यह सबकुछ हो , रहा है, सबको धिक्कार है।
असमत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या, धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥
---------------- भर्तृहरिशतक
जिसका सदा चिन्तन करता हूँ , वह् मेरे से विरक्त है । वह किसी और् पर आसक्त है , और वह और किसी अन्य पर आसक्त है, और मुझे तो कोई अन्य ही चाहता है, इसलिये काम देव सहित जिसकी प्रेरणा से यह सबकुछ हो , रहा है, सबको धिक्कार है।
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