गुरुवार, 31 मई 2012

नीति-संग्रह

याम् चिन्तयामि सततम् महि सा विरक्ता , साप्यन्यमिच्छति जन: स जनोन्यसक्त: ।
असमत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या, धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च
                                                                                       ---------------- भर्तृहरिशतक  
जिसका सदा  चिन्तन करता हूँ  , वह् मेरे से विरक्त है । वह किसी और्  पर आसक्त है , और वह  और  किसी अन्य पर आसक्त है, और मुझे तो कोई अन्य ही चाहता  है,  इसलिये काम देव सहित जिसकी प्रेरणा से यह सबकुछ  हो , रहा है, सबको धिक्कार है।                

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